Saturday 4 May 2019

शिक्षा के माध्यम से महिला सशक्तिकरण

This is a translation of our post from 18th August 2017 on “Empowering Women through Education”

गांधी जी का कथन है कि यदि हम एक पुरुष को शिक्षित करते हैं, तो केवल एक व्यक्ति ही शिक्षित होता है, लेकिन एक महिला को शिक्षित करने से पूरा समाज शिक्षित होता है।

मेरी माँ, मौसियाँ व दयालबाग़ की उनकी अन्य हमउम्र स्त्रियों का शिक्षा का स्तर अचंभित करता है। यहाँ कई महिलाएँ डॉक्टरेट की डिग्री युक्त हैं और कोई भी महिला स्नातक डिग्री से वंचित नज़र नहीं आती।

भारत के सेंसस आँकड़ो के अनुसार सन् 1951 तक महिला शिक्षा 8.81% थी और सन् 1961 में यह 15.35% हो गई। उस समय वे सभी शिक्षित माने जाते थे जो पाँच वर्ष आयु से अधिक के थे और लिखा हुआ पढ़ सकते थे। उसी समय, यानी की 1950-60 में दयालबाग़ में एक ऐसा महिला समाज था जहाँ सभी महिलाएँ 100% पढ़ी लिखी थीं और कई युवा महिला स्नातक, स्नातकोत्तर या डॉक्टरेट की डिग्री धारी थीं।

आज की पोस्ट में हम 60 वर्ष पूर्व सन 1955-60 के समय को चित्रित कर रहे हैं जब दयालबाग़ में शिक्षा द्वारा महिलाओं को सबल और प्रगतिशील बनाया जा रहा था।

यह लेख डॉ दयाल प्यारी सिंह द्वारा वर्णित है, जो कि प्रेम विद्यालय गर्ल्ज़ इंटर कॉलेज की पूर्व छात्रा हैं व उन्होने बीऐ व बीटी विमेंस ट्रेनिंग कॉलेज दयालबाग़ से सन् 1958-59 में की। तत्पश्चात वह निरंतर आगे बढ़ते हुए महारानी लक्ष्मीबाई गर्ल्ज़ पोस्ट ग्रैजूएट शासकीय (स्वशासी) महाविद्यालय, भोपाल की प्रचार्या बनीं तथा शिक्षा के कार्य को आगे बढ़ाने का नेतृत्व किया।

सस्नेह,
अनुराग

डॉ दयाल प्यारी सिंह लिखती हैं...

शिक्षा के माध्यम से महिला सशक्तिकरण

दयालबाग़ की नीव 20 जनवरी 1915 में, बसंत पंचमी के पावन दिन, परम श्रद्धेय सर आनंद स्वरूप जी ने, अपने अनुयाईयों के लिए एक आश्रम व आध्यात्मिक गृह के रूप में डाली थी। स्थापना के अगले ही दिन दयालबाग़ में प्रथम भवन निर्माण की नींव रखी गयी, जो की शिक्षा के लिए थी। यही भवन राधास्वामी एजुकेशनल इन्स्टिट्यूट (REI) तथा बाद में दयालबाग़ एजुकेशनल इन्स्टिट्यूट (DEI) बना। परम पूज्य आनंद स्वरूप जी ने कटीली झाड़ियों व धारदार पौधों से लदी रेतीली ज़मीन पर अपनी छड़ी से पोईया घाट के समानांतर, दक्षिण से उत्तर तक एक सीधी रेखा खींच दी। इस सीधी रेखा ने शीघ्र अपना आकार, श्रद्धेय मेहता जी महाराज की देख रेख में, एक बड़े निर्माण का रूप धारण किया। इसके लाल ईंट से निर्मित बड़े आकार के गॉथिक घुमावदार आर्चेज़ (तोरन) सूर्य की लाल-लाल किरणों से एकीकृत हो अति आकर्षक नज़ारा पेश करते हैं।

राधास्वामी एजुकेशनल इन्स्टिट्यूट का भवन

शिक्षा प्रणाली में आरम्भ से ही (1 जनवरी 1917) अनेक उच्च स्तरीय क्रियाएँ शामिल थीं जो कि नींव के संस्थापक के महान दूरदर्शी स्वप्न का प्रतीक हैं। उनमें से एक उल्लेखनीय प्रगतिशील क्रिया थी सह-शिक्षा। आरम्भ से ही पहली से पाँचवी कक्षा तक के लड़के-लड़कियों के लिए सह-शिक्षा (co-educational classes) का प्रबंध व आयोजन किया गया। यह वह समय था जब माता-पिता लड़कियों को पढ़ने भेजने में हिचकिचाते थे, वहीं दयालबाग़ में ऐसा स्कूल था जहाँ लड़के लड़कियाँ साथ पढ़ायी करते थे।

14 अक्टूबर 1918 को राधास्वामी सतसंग सभा ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव को पारित किया जिससे दयालबाग़ में रहने वाले लड़के व लड़कियों को प्राइमरी शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य किया गया। भारत में उस समय डेढ़ प्रतिशत महिलाएँ साक्षर थीं। उसी बैठक में लड़कियों के लिए मिडल व सीनीयर स्कूल खोलने के प्रस्ताव को भी सहमति मिली।

परम श्रद्धेय आनंद स्वरूप जी का विश्वास था कि बच्चों के चरित्र निर्माण में महिलाओं की अति महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने स्पष्ट रूप से, प्रभावशाली शब्दों में कहा कि आनेवाली पीढ़ी के मानसिक, नैतिक व आध्यात्मिक विकास महिलाओं पे निर्भर है। उन्होंने आगे कहा कि हमें समझ लेना चाहिए कि जब तक लड़कियों का पालन-पोषण व उनकी शिक्षा ठीक ढंग से क्रियान्वित नहीं की जाएगी, तब तक सतसंग समाज उन्नति नहीं कर सकता।

उनका सोचना था कि भारत की उन्नति स्त्रियों पर निर्भर है और वह चाहते थे कि सतसंगी इस बात पर ख़ास ध्यान देवें और अपनी बेटियों व बहनों की शिक्षा हेतु सही इंतज़ाम करें।

विमेंस ट्रेनिंग कॉलेज के अध्यापक

इसी विचार को कार्यान्वित कर छात्राओं के लिए सन् 1930 में एक मिडिल स्कूल, प्रेम विद्यालय आरम्भ किया गया जिसे चार वर्ष बाद हाई स्कूल और तत्पश्चात 1939 में इंटर्मीडीयट तक उन्नत किया गया।

परम श्रद्धेय मेहता जी महाराज ने स्त्री शिक्षा को आगे बढ़ाने हेतु विचार अत्यंत प्रेरणादायी शब्दों में अभिव्यक्त किए कि भारत अपनी महिला समुदाय से आशा करता है कि वे अपने अंदर शिक्षा की लौ प्रज्वलित करेंगी तथा ज्ञान की रोशनी से अपने चारों ओर फैले अज्ञान के अंधकार को दूर कर, घृणा, आपसी लड़ायी-झगड़े को हटाकर, प्रेम व शांति का वातावरण निर्मित करेंगी।


सन् 1947 में विमेंस ट्रेनिंग कॉलेज के उद्घाटन के अवसर पर परम श्रद्धेय मेहता जी ने कहा कि मैनेजिंग कमिटी आर ई आइ ने विमेंस ट्रेनिंग कॉलेज (WTC) आरम्भ किया है ताकि युवा महिलाएँ जिन्हें स्नातक उपाधि प्राप्त है, उन्हें नौकरी के लिए कार्य कुशलता की ट्रेनिंग दी जा सके। उन्होंने यह भी फ़रमाया कि उनका विश्वास है कि पढ़ी लिखी युवा महिलाएँ अपने घर व बाहर एक आदर्श उदाहरण स्थापित करेंगी।

सुखिया बहेनजी - प्राध्यापिका


मेरा जन्म बाँदा ज़िला, उत्तर प्रदेश में हुआ, जहाँ पर लड़कियों की शिक्षा हेतु दसवीं कक्षा तक का एक सरकारी स्कूल था। वर्ष 1954 में मेरे माता पिता ने हम भाई बहनों को दयालबाग़ भेज दिया जहाँ शिक्षा की पूर्ण सुविधाएँ थीं। शिक्षा का स्तर उँचा था, वातावरण सुंदर, सुरक्षित उच्च मूल्यों व आदर्शों से परिपूर्ण था।

जब मैं अपनी बहनों के साथ दयालबाग़ आई तो पाया कि लड़कियों की शिक्षा पर यहाँ विशेष ज़ोर था तथा किसी प्रकार का जात-पात, रंग-भेद, ऊँच-नीच आदि का नामोनिशान नहीं था। स्वस्थ वातावरण गवाह था कि प्रत्येक छात्रा अच्छी शिक्षा प्राप्त करेगी। प्रेम विद्यालय तथा विमेंस ट्रेनिंग कॉलेज ने लड़कियों को सबल  सशक्त बनाने में बहुत ही अहम भूमिका अदा की है। छात्रा के सर्वागीण विकास ही संस्थाओं का लक्ष्य था और इसी कारण पास के शहरों  राज्यों से छात्राएँ यहाँ पढ़ने आती थीं। शिक्षक वर्ग उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त था। योग्य छात्राओं हेतु विशेष छात्रवृति का प्रबन्ध था।

एक अन्य उल्लेखनीय श्रेत्र वोकेशनल शिक्षा का था मुझे व मेरी बहनों व अन्य छात्राओं को उचित नौकरी प्राप्त करने में इस कारण बहुत मदद मिली। आज यह पूर्व छात्राएँ शिक्षा जगत के उच्च पदों पर स्थापित हैं तथा महाविद्यालय की यादें दिल में संजोये हैं।

यूथ फ़ेस्टिवल टीम तीन मूर्ति भवन में

कॉलेज द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम उच्च स्तर के होते थे। मुझे व मेरी सहपाठी छात्राओं को दिल्ली के तालकटोरा ग्राउंड में आयोजित यूथ फ़ेस्टिवल में, आगरा यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। WTC का समूह नृत्य बहुत सराहा गया व राष्ट्रपति भवन के at home व तीन मूर्ति भवन में पंडित नेहरु ने हमारा मनोबल बढ़ाया।

खेलकूद भी स्त्री शिक्षा का अभिन्न अंग था, जिसमें वॉलीबॉल, खो-खो और कबड्डी लड़कियों के मनपसंद खेल थे। कॉलेज के NCC विंग में हर रविवार राइफ़ल शूटिंग व परेड में छात्रायें शामिल होती थीं।

आज भी यह मूल्यपरख शिक्षा, महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु आयोजित होती है और महिला सशक्तिकरण को मजबूती प्रदान कर रही है

5 comments:

  1. Wonderful description of women empowerment in Dayalbagh..True that Dayalbagh has always been ahead in every walk of life ..be it women empowerment or anything else..

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  2. The article beautifully captures how women's empowerment is a core value in the Dayalbagh way of life

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  3. A very well composed article. It makes me feel proud, that our institution had given and still gives great importance to women empowerment...

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  4. I can endorse only fully that the empowerment of women is most important to the society and nation which was adopted and implemented in letter and spirit by Sir Sahab ji Maharaj and subsequent Gurus of Dayal bagh.

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