कुछ हफ्ते पहले, मुझे दयालबाग़ शैक्षणिक संस्थान के एक कार्यक्रम TEDxDEI में भाग लेने का अवसर मिला; ज्ञान, शिक्षा और सर्वोत्तम प्रथाओं के ज्ञापन की यह एक उत्कृष्ट संगोष्ठी थी। इस संगोष्ठी में डॉ अंजु भटनागर ने, अपने सह-डॉक्टरों व सुपर-स्पेशलिस्टस, जो कि अपनी हिप्पोक्रेटिक शपथ की सीमाओं से आगे बढ़कर निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं, की अखिल भारतीय टीम द्वारा किए गए उत्कृष्ट काम का ब्योरा दिया।
डॉ अंजू भटनागर ने एमबीबीएस की पढ़ाई के सभी विषयों में सम्मान और पदक प्राप्त करने के बाद, बाल चिकित्सा में विशिष्टता प्राप्त की व अपनी उत्कृष्ट मेहनत से राष्ट्रपति पदक प्राप्त किया। कॉर्पोरेट अस्पतालों में अग्रणी पदों में रहने के बाद, वह पिछले ८-९ वर्षों से दयालबाग़ और राजाबोरारी में मुफ्त चिकित्सा शिविरों में अपनी सेवाएँ प्रदान कर रही हैं। आदिवासी और गांवों के बच्चों का इलाज करते हुए उन्हें एहसास हुआ कि उनकी सेवाओं की सबसे ज़्यादा जरूरत यहीं है। दयालबाग़ के सरन आश्रम अस्पताल में बाल रोग व नवजात शिशु विशेषज्ञ की भूमिका में, अब वे वंचित वर्ग से आने वाले बच्चों के इलाज में अपनी कुशलता व अनुभव का उपयोग करती हैं व निस्वार्थ सेवा प्रदान कर रही हैं।
डॉ अंजु भटनागर इस सप्ताह, “दयालबाग़ मल्टी-स्पेशियलिटी मेडिकल और ग्राम सहायता कैम्प” पर एक तस्वीर-निबंध प्रस्तुत कर रही हैं।
अंग्रेज़ी में लेख हमने कुछ दिन पहले छापा था। अब मैंने इस का हिंदी में रूपांतरण करा है। आशा है की आपको पसंद आयेगा।
स्वस्थ रहें,
अनुराग
डॉ अंजु भटनागर लिखती हैं...
दयालबाग़ मल्टी स्पेशियलिटी मेडिकल कैम्प की यात्रा के लिए चलते हैं।
रविवार की सुबह ७ बजे सूर्योदय के साथ यमुना के तट पर लोक संगीत की आवाज़ ने पूरे गांव का ध्यान आकर्षित किया है व पूरे वातावरण को ऊर्जित कर दिया है।
आस-पास के गांव के बच्चे शिविर स्थल की तरफ जल्दी-जल्दी दौड़ते हैं, उनके चेहरे पर मुस्कुराहट अगले तीन घंटे रोमांचक गतिविधियों का आनंद का आभास दे रही हैं। उनकी १४ दिन की प्रतीक्षा समाप्त हुई। यह शिविर पिछले कई वर्षों से उनके जीवन को एक नई गति प्रदान कर रहे हैं।
इस छोटी सी लड़की को पता है कि उसे बुखार और ठंड के लिए बच्चों के विशेषज्ञ के पास जाना है और वह अपनी बहन के साथ सीधे मेरी मेज़ पर आ गई है। बच्चे हमारे साथ इतने सुपरिचित हैं कि उन्हें अपने माता-पिता के दिशा-निर्देश की ज़रूरत नहीं है और डॉक्टर के परामर्श लिए सीधे आत्मविश्वास के साथ आते हैं।
इस लड़की के माता-पिता आयुर्वेदिक प्रणाली में मान्यता रखते हैं और “देसी दवाई” चाहते हैं,
जबकि इसकी दादी इसको तत्कालिक राहत के लिए नेबूलाइजेशन के लिए लायी हैं, वैसे इसका उपचार होम्योपैथिक पद्धति से चल रहा है।
और यह युवती अक्सर कैम्प में आती है; यह आज की उसकी ब्लॉक प्रिंटिंग की कोशिश को ख़ुशी-ख़ुशी प्रदर्शित कर रही है।
और यह लड़कियाँ सोफ्ट टॉएस बनाना सीख रही हैं।
और यह धागे के काम में मशगूल है।
और यह छोटा लड़का अब शतरंज में माहिर है क्योंकि वह इसे “होल इन द वाल” कंप्यूटर काउंटर पर पिछले कई वर्षों से खेल रहा है और अब बुनियादी कंप्यूटर कुशलता विकसित करने में अन्य बच्चों का मार्गदर्शन भी कर रहा है। “होल इन द वाल” गतिविधियाँ गांवों में सबसे लोकप्रिय हैं, और अब १२०० से ज्यादा बच्चे इस काउंटर पर झुंड लगाते हैं और इन वर्षों में ८००० से अधिक से अधिक प्रयासों में अपनी अक़्ल पैनी कर चुके हैं। यह बच्चे अक्सर अपने कंप्यूटर कौशल से हमें आश्चर्यचकित करते हैं।
यह मुफ़्त मल्टी-स्पेशियलिटी शिविर की विविध गतिविधियों के उधारण हैं जो की दयालबाग़ चिकित्सा राहत और सामाजिक कल्याण चैरिटेबल सोसायटी के तहत आयोजित किया जाता है।
दयालबाग़ के यह चिकित्सा शिविर बेहद लोकप्रिय हो गए हैं, और मध्य प्रदेश के दूरदराज के आदिवासी इलाके जैसे राजाबोरारी (जहां २०१० के ग्रीष्मकालीन दौरे में श्रध्येय प्रोफेसर प्रेम सरन सतसंगी साहब ने इन शिविरों की परिकल्पना की थी) सहित समस्त भारत के कई अन्य जगहों में इन मल्टी-स्पेशियलिटी शिविरों में रोगियों को उनकी अनूठी आवश्यकताओं के अनुसार एकीकृत तरीके से इलाज किया जाता है।
सरकारी निर्देशों को ध्यान में रखते हुए पेशन्टस को निःशुल्क जेनेरिक दवाएं दी जाती हैं। दवाई कम्पनियों से मुफ़्त में प्राप्त सैम्पल्स बिलकुल इस्तेमाल नहीं किए जाते।
विभिन्न विशेषताओं और दवा प्रणालियों के डॉक्टर कई सालों से सहयोग से काम कर रहे हैं। इससे मरीजों को आसानी व डॉक्टर एक दूसरे से बेझिझक परामर्श कर पाते हैं। दयालबाग़ मेडिकल रिलीफ सोसाइटी और दयालबाग़ शैक्षिणिक संस्थान की एनएसएस योजना, शिविर के आयोजन में मदद करती हैं।
बच्चों के बहुमुखी विकास के लिए, समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को एक एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ देने के अलावा, शिविर मनोरंजन सुविधाएं प्रदान करता है। बच्चों का ध्यान संलग्न करने के लिए उचित सामग्री प्रदान की जाती है और उन्हें अनुसंधान व खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उन्हें अपनी रुचि के अनुसार अपनी गतिविधि चुनने की स्वतंत्रता दी जाती है। कैम्प में वे अपने स्वयं के समूह बनाते हैं, यदि वे चाहते हैं तो समूह बदल सकते हैं। बच्चे खुद सीखते हैं और यह भी सीखते हैं कि वे क्या सीखना चाहते हैं।
बच्चों के बहुमुखी विकास के लिए, समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को एक एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ देने के अलावा, शिविर मनोरंजन सुविधाएं प्रदान करता है। बच्चों का ध्यान संलग्न करने के लिए उचित सामग्री प्रदान की जाती है और उन्हें अनुसंधान व खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उन्हें अपनी रुचि के अनुसार अपनी गतिविधि चुनने की स्वतंत्रता दी जाती है। कैम्प में वे अपने स्वयं के समूह बनाते हैं, यदि वे चाहते हैं तो समूह बदल सकते हैं। बच्चे खुद सीखते हैं और यह भी सीखते हैं कि वे क्या सीखना चाहते हैं।
इन कैम्पों ने एक आश्चर्यजनक रूप से न केवल इन बच्चों का जीवन बल्कि उनके परिवारजनों का जीवन परिवर्तित कर दिया है। यहाँ हर रूचि, हर उम्र और हर योग्यता के लिए कुछ है।
गृहणियों के लिए खाद्य संरक्षण काउंटर है, ग्रामीणों के लिए कृषि, डेयरी, जल, बिजली, स्वच्छता इत्यादि से संबंधित समस्याओं को समझने और उनके समाधान की सहायता के लिए चौपाल में सहायता सेवाएं हैं।
और फिर “भगवत गीता के उपदेश” पर लाइव इंटरैक्टिव कमेंट्री है। यह चर्चा, समुदाय में नैतिकता और आध्यात्मिक मूल्यों को दृढ़ करने का संकल्प है। इन छंदों की सरल व्याख्या पृष्ठभूमि में चलती रहती है।
शिक्षा के विकल्प और रोजगार सम्बंधित प्रश्नों पर युवाओं को मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है। एक काउंटर अंग्रेजी में वार्तालाप कुशलता विकसित करने में मदद करता है।
इनमे से एक लड़की जो शुरुआत से शिविर में आती रही है, ने यहाँ से प्राप्त मार्गदर्शन के बाद कॉलेज में दाखिला लिया और अब वह बीए कर रही है। उसने दयालबाग़ शैक्षिणिक संस्थान में प्रवेश पाने में अपने गांव की तीन अन्य लड़कियों की मदद भी की है।
शुरू में, बच्चों ने स्वीकारा कि उन्हें यह गतिविधियाँ पसंद आती हैं और जब मैंने एक लड़के से पूछा कि आप को कैंप कैसा लगा तो उसने मुझसे कहा कि “बुरो क्या है”। अब वर्षों से हमारे रिश्ते मजबूत हुए हैं और बच्चों का विश्वास और रुचि विकसित हुई है और अब जब उन्हें यही सवाल पूछते हैं तो वे इसकी सराहना करते हैं और “बहुत बढ़िया” और “बहुत कुछ सीखा” कहते हैं!
मध्यप्रदेश में राजाबोरारी के जनजातीय क्षेत्र में, ९ साल पहले शिविर की शुरुआत में कुछ बुनियादी दवाएं वितरित की गईं, लेकिन धीरे-धीरे होम्योपैथी और आयुर्वेद व अन्य प्रणालियों को शामिल करने के साथ, शिविर एक समग्र स्वास्थ्य शिविर में विकसित हुआ है। इस दूरस्थ क्षेत्र में विशेषज्ञ सलाह लेने के लिए टेली-मेडिसिन का भी उपयोग किया जाता है। ग्रामीण इस सुविधा का लाभ उठाते हैं और कई आदिवासी महिलाओं ने इन शिविरों में सौफ्ट टॉएस निर्माण, खाद्य संरक्षण और सिलाई सीख कर इसे अपना कमाई का साधन बनाया है।
संक्षेप में, इन मेडिकल शिविरों की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण कारक है इनका एकीकृत समग्र विषय पर आधारित होना।
दूसरा कारक है टीम की स्थिरता और नियमितता। यह मोबाइल शिविर की तरह नहीं हैं जो एक दिन के लिए आयोजित किए जाते हैं और प्रचार के बाद टीम फिरसे दिखाई नहीं देती!
तीसरा यह है कि बिना अहंकार के विभिन्न विशिष्टताओं और दवा प्रणाली के डॉक्टरों के बीच सहयोग और निकटता बहुत दुर्लभ है, जहां रोगी का लाभ ही एकमात्र विचार है और टीम के सदस्य मानव जाति के लिए निःस्वार्थ सेवा प्रदान करने के लिए बहुत प्रेरित हैं।
शिविर की स्थापना से उसकी समाप्ति तक दयालबाग़ शैक्षिणिक संस्थान के छात्रों, शिक्षकों, कर्मचारियों और सरन आश्रम अस्पताल के डॉक्टरों और यहां तक कि गांव के बच्चों की एक टीम इसमें कार्यान्वित रहती है। इन शिविरों में कार्यरत सदस्य व डॉक्टरों की “निःस्वार्थ सेवा” से वह ख़ुद लाभान्वित हुए हैं और स्वस्थ व आनंदमयी जीवन व्यतीत कर रहे हैं!