Thursday, 19 April 2018

दयालबाग़ मल्टी-स्पेशियलिटी मेडिकल और ग्राम सहायता कैम्प

कुछ हफ्ते पहले, मुझे दयालबाग़ शैक्षणिक संस्थान के एक कार्यक्रम TEDxDEI में भाग लेने का अवसर मिला; ज्ञान, शिक्षा और सर्वोत्तम प्रथाओं के ज्ञापन की यह एक उत्कृष्ट संगोष्ठी थी। इस संगोष्ठी में डॉ अंजु भटनागर ने, अपने सह-डॉक्टरों व सुपर-स्पेशलिस्टस, जो कि अपनी हिप्पोक्रेटिक शपथ की सीमाओं से आगे बढ़कर निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं, की अखिल भारतीय टीम द्वारा किए गए उत्कृष्ट काम का ब्योरा दिया।

डॉ अंजू भटनागर ने एमबीबीएस की पढ़ाई के सभी विषयों में सम्मान और पदक प्राप्त करने के बाद, बाल चिकित्सा में विशिष्टता प्राप्त की व अपनी  उत्कृष्ट मेहनत से राष्ट्रपति पदक प्राप्त किया। कॉर्पोरेट अस्पतालों में अग्रणी पदों में रहने के बाद, वह पिछले ८-९ वर्षों से दयालबाग़ और राजाबोरारी में मुफ्त चिकित्सा शिविरों में अपनी सेवाएँ प्रदान कर रही हैं। आदिवासी और गांवों के बच्चों का इलाज करते हुए उन्हें एहसास हुआ कि उनकी सेवाओं की सबसे ज़्यादा जरूरत यहीं है। दयालबाग़ के सरन आश्रम अस्पताल में बाल रोग व नवजात शिशु विशेषज्ञ की भूमिका में, अब वे वंचित वर्ग से आने वाले बच्चों के इलाज में अपनी कुशलता व अनुभव का उपयोग करती हैं व निस्वार्थ सेवा प्रदान कर रही हैं।

डॉ अंजु भटनागर इस सप्ताह, “दयालबाग़ मल्टी-स्पेशियलिटी मेडिकल और ग्राम सहायता कैम्प” पर एक तस्वीर-निबंध प्रस्तुत कर रही हैं।

अंग्रेज़ी में लेख हमने कुछ दिन पहले छापा था। अब मैंने इस का हिंदी में रूपांतरण करा है। आशा है की आपको पसंद आयेगा।

स्वस्थ रहें,
अनुराग

डॉ अंजु भटनागर लिखती हैं...

दयालबाग़ मल्टी स्पेशियलिटी मेडिकल कैम्प की यात्रा के लिए चलते हैं।



रविवार की सुबह ७ बजे सूर्योदय के साथ यमुना के तट पर लोक संगीत की आवाज़ ने पूरे गांव का ध्यान आकर्षित किया है व पूरे  वातावरण को ऊर्जित कर दिया है।



आस-पास के गांव के बच्चे शिविर स्थल की तरफ जल्दी-जल्दी दौड़ते हैं, उनके चेहरे पर मुस्कुराहट अगले तीन घंटे रोमांचक गतिविधियों का आनंद का आभास दे रही हैं। उनकी १४ दिन की प्रतीक्षा समाप्त हुई। यह शिविर पिछले कई वर्षों से उनके जीवन को एक नई गति प्रदान कर रहे हैं।


इस छोटी सी लड़की को पता है कि उसे बुखार और ठंड के लिए बच्चों के विशेषज्ञ के पास  जाना है और वह अपनी बहन के साथ सीधे मेरी मेज़ पर आ गई है। बच्चे हमारे साथ इतने सुपरिचित हैं कि उन्हें अपने माता-पिता के दिशा-निर्देश की ज़रूरत नहीं है और डॉक्टर के परामर्श लिए सीधे आत्मविश्वास के साथ आते हैं।


इस लड़की के माता-पिता आयुर्वेदिक प्रणाली में मान्यता रखते हैं और “देसी दवाई” चाहते हैं,


जबकि इसकी दादी इसको तत्कालिक राहत के लिए नेबूलाइजेशन के लिए लायी हैं, वैसे इसका उपचार होम्योपैथिक पद्धति से चल रहा है।


और यह युवती अक्सर कैम्प में आती है; यह आज की उसकी ब्लॉक प्रिंटिंग की कोशिश को ख़ुशी-ख़ुशी प्रदर्शित कर रही है।


और यह लड़कियाँ सोफ्ट टॉएस बनाना सीख रही हैं।


और यह धागे के काम में मशगूल है।



और यह छोटा लड़का अब शतरंज में माहिर है क्योंकि वह इसे “होल इन द वाल” कंप्यूटर काउंटर पर पिछले कई वर्षों से खेल रहा है और अब बुनियादी कंप्यूटर कुशलता विकसित करने में अन्य बच्चों का मार्गदर्शन भी कर रहा है। “होल इन द वाल” गतिविधियाँ गांवों में सबसे लोकप्रिय हैं, और अब १२०० से ज्यादा बच्चे इस काउंटर पर झुंड लगाते हैं और इन वर्षों में ८००० से अधिक से अधिक प्रयासों में अपनी अक़्ल पैनी कर चुके हैं। यह बच्चे अक्सर अपने कंप्यूटर कौशल से हमें आश्चर्यचकित करते हैं।



यह मुफ़्त मल्टी-स्पेशियलिटी शिविर की विविध गतिविधियों के उधारण हैं जो की दयालबाग़ चिकित्सा राहत और सामाजिक कल्याण चैरिटेबल सोसायटी के तहत आयोजित किया जाता है।


दयालबाग़ के यह चिकित्सा शिविर बेहद लोकप्रिय हो गए हैं, और मध्य प्रदेश के दूरदराज के आदिवासी इलाके जैसे राजाबोरारी (जहां २०१० के ग्रीष्मकालीन दौरे में श्रध्येय प्रोफेसर प्रेम सरन सतसंगी साहब ने इन शिविरों की परिकल्पना की थी) सहित समस्त भारत के कई अन्य जगहों में इन मल्टी-स्पेशियलिटी शिविरों में रोगियों को उनकी अनूठी आवश्यकताओं के अनुसार एकीकृत तरीके से इलाज किया जाता है।


सरकारी निर्देशों को ध्यान में रखते हुए पेशन्टस को निःशुल्क जेनेरिक दवाएं दी जाती हैं। दवाई कम्पनियों से मुफ़्त में प्राप्त सैम्पल्स बिलकुल इस्तेमाल नहीं किए जाते।



विभिन्न विशेषताओं और दवा प्रणालियों के डॉक्टर कई सालों से सहयोग से काम कर रहे हैं। इससे मरीजों को  आसानी व डॉक्टर एक दूसरे से बेझिझक परामर्श कर पाते हैं। दयालबाग़ मेडिकल रिलीफ सोसाइटी और दयालबाग़ शैक्षिणिक संस्थान की एनएसएस योजना, शिविर के आयोजन में मदद करती हैं।



बच्चों के बहुमुखी विकास के लिए, समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को एक एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ देने के अलावा, शिविर मनोरंजन सुविधाएं प्रदान करता है। बच्चों का ध्यान संलग्न करने के लिए उचित सामग्री प्रदान की जाती है और उन्हें अनुसंधान व खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उन्हें अपनी रुचि के अनुसार अपनी गतिविधि चुनने की स्वतंत्रता दी जाती है। कैम्प में वे अपने स्वयं के समूह बनाते हैं, यदि वे चाहते हैं तो समूह बदल सकते हैं। बच्चे खुद सीखते हैं और यह भी सीखते हैं कि वे क्या सीखना चाहते हैं।



इन कैम्पों ने एक आश्चर्यजनक रूप से न केवल इन बच्चों का जीवन बल्कि उनके परिवारजनों का जीवन परिवर्तित कर दिया है। यहाँ हर रूचि, हर उम्र और हर योग्यता के लिए कुछ है।





गृहणियों के लिए खाद्य संरक्षण काउंटर है, ग्रामीणों के लिए कृषि, डेयरी, जल, बिजली, स्वच्छता इत्यादि से संबंधित समस्याओं को समझने और उनके समाधान की सहायता के लिए चौपाल में सहायता सेवाएं हैं।



और फिर “भगवत गीता के उपदेश” पर लाइव इंटरैक्टिव कमेंट्री है। यह चर्चा, समुदाय में नैतिकता और आध्यात्मिक मूल्यों को दृढ़ करने का संकल्प है। इन छंदों की सरल व्याख्या पृष्ठभूमि में चलती रहती है।

शिक्षा के विकल्प और रोजगार सम्बंधित प्रश्नों पर युवाओं को मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है। एक काउंटर अंग्रेजी में वार्तालाप कुशलता विकसित करने में मदद करता है।


इनमे से एक लड़की जो शुरुआत से शिविर में आती रही है, ने यहाँ से प्राप्त मार्गदर्शन के बाद कॉलेज में दाखिला लिया और अब वह बीए कर रही है। उसने दयालबाग़ शैक्षिणिक संस्थान में प्रवेश पाने में अपने गांव की तीन अन्य लड़कियों की मदद भी की है।


शुरू में, बच्चों ने स्वीकारा कि उन्हें यह गतिविधियाँ पसंद आती हैं और जब मैंने एक लड़के से पूछा कि आप को कैंप कैसा लगा तो उसने मुझसे कहा कि “बुरो क्या है”। अब वर्षों से हमारे रिश्ते मजबूत हुए हैं और बच्चों का  विश्वास और रुचि विकसित हुई  है और अब जब उन्हें यही सवाल पूछते हैं तो वे इसकी सराहना करते हैं और “बहुत बढ़िया” और “बहुत कुछ सीखा” कहते हैं!


मध्यप्रदेश में राजाबोरारी के जनजातीय क्षेत्र में, ९ साल पहले शिविर की शुरुआत में कुछ बुनियादी दवाएं वितरित की गईं, लेकिन धीरे-धीरे होम्योपैथी और आयुर्वेद व अन्य प्रणालियों को शामिल करने के साथ, शिविर एक समग्र स्वास्थ्य शिविर में विकसित हुआ है। इस दूरस्थ क्षेत्र में विशेषज्ञ सलाह लेने के लिए टेली-मेडिसिन का भी उपयोग किया जाता है। ग्रामीण इस सुविधा का लाभ उठाते हैं और कई आदिवासी महिलाओं ने इन शिविरों में सौफ्ट टॉएस निर्माण, खाद्य संरक्षण और सिलाई सीख कर इसे अपना कमाई का साधन बनाया है।

संक्षेप में, इन मेडिकल शिविरों की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण कारक है इनका एकीकृत समग्र विषय पर आधारित होना।

दूसरा कारक है टीम की स्थिरता और नियमितता। यह मोबाइल शिविर की तरह नहीं हैं जो एक दिन के लिए आयोजित किए जाते हैं और प्रचार के बाद टीम फिरसे दिखाई नहीं देती!

तीसरा यह है कि बिना अहंकार के विभिन्न विशिष्टताओं और दवा प्रणाली के डॉक्टरों के बीच सहयोग और निकटता बहुत दुर्लभ है, जहां रोगी का लाभ ही एकमात्र विचार है और टीम के सदस्य मानव जाति के लिए निःस्वार्थ सेवा प्रदान करने के लिए बहुत प्रेरित हैं।

शिविर की स्थापना से उसकी समाप्ति तक दयालबाग़ शैक्षिणिक संस्थान के छात्रों, शिक्षकों, कर्मचारियों और सरन आश्रम अस्पताल के डॉक्टरों और यहां तक कि गांव के बच्चों की एक टीम इसमें कार्यान्वित रहती है। इन शिविरों में कार्यरत सदस्य व डॉक्टरों की “निःस्वार्थ सेवा” से वह ख़ुद लाभान्वित हुए हैं और स्वस्थ व आनंदमयी जीवन व्यतीत कर रहे हैं!



Saturday, 7 April 2018

Integrated Holistic Healthcare at the Dayalbagh Medical Camp

A few weeks back, I had the opportunity to attend one of Dayalbagh Educational Institute's events TEDxDEI; an excellently organized event with so much of knowledge, learning and best practices being shared. One of the best talks at the event was by Dr. Anjoo Bhatnagar. She shared with us details of the excellent work being carried out by a pan-India team of Doctors and Super-Specialists, Doctors who follow the Hippocratic Oath and then do some more by including selfless service in their work.

Dr Anjoo Bhatnagar after completing her MBBS with honors and medals in almost all subjects of medicine and receiving President’s medal for her outstanding meritorious performance specialized in Pediatrics. After devoting half of her professional life in Leadership positions in Corporate Hospitals and in leading high-end intensive care pediatrics, she started participating in free medical camps at Dayalbagh and Rajaborari, starting from the inception of these camps around 8-9 years ago. While treating tribal and village children she realized that it’s here that her services are most needed. In her full-time role as a honorary consultant pediatrician and neonatologist at Saran Ashram Hospital at Dayalbagh she now uses her qualification and vast experience to treat children coming from disadvantaged backgrounds. Connecting to this needy segment of children has given her immense professional satisfaction. For her, this selfless service phase has been personally fulfilling and enriching and has been so very different from a world of gold medals, money and corporate hierarchies.

Dr. Anjoo Bhatnagar has put together a photo-essay this week explaining the genesis and working of this great initiative, sharing her experience of Dayalbagh multi-specialty medical and village assistance camps which have a mission to relieve the suffering of mankind by providing access to holistic Medical Healthcare Services to those who need it the most.

Remain Healthy,
Anurag

Dr. Anjoo writes...

Let me take you for a visit to a Dayalbagh multi-specialty medical camp.


It’s 7 AM on a Sunday morning, and with the sunrise, the sound of folk music has started resounding on the banks of river Yamuna, filling the entire village environment with new energy that has started catching everyone’s attention.


Children from nearby villages start running towards the camp site, with a broad  smile on their faces, eager to enjoy activities they love for the next 3 hours, ending their 14 day wait, an event that has happened again and again for last many years, and continues to give their lives a new momentum.


This little girl knows where to look for the child specialist for her fever and cold and has come straight to my desk with her sister. Children don’t even need their parents to accompany them for the doctor’s consultation as they feel so confident and familiar with us.


This girls parents believe in the Ayurvedic system for treatment and want "Desi Davai"  for her ailment, 


while this grandmother has brought her little one for nebulization as a quick fix for her wheezy chest for which she is otherwise undergoing homeopathic treatment.


She is a tall young girl, a frequent visitor to the camp and is happy to have tried her hands today on block printing and this is her creation.


While these girls are learning to make soft toys and 


she is so engrossed in thread work and will not like to be disturbed by anything else.



This young boy is now an expert in chess as he has been playing it for the last many years here at ‘hole in the wall’ computer counter and is now guiding other children to develop basic computer skills. This hole in the wall activity, is the most popular amongst the deprived village children who flock this counter in increasing number of more than 1,200 and in their over 8,000 visits in these years have become sharper than ever. They  frequently surprise us by their computer skills which they have developed on their own  while navigating  through and helping each other if they get stuck at any point.


This is a diverse scenario from our free multi-specialty camps which is organized under the aegis of Dayalbagh medical relief and social welfare charitable societies. 
These camps have become extremely popular not only around Dayalbagh but at several other places all over India including Rajaborari, the remote tribal area of Madhya Pradesh where it was conceived in the summer tour of 2010 by Revered Prof Prem Saran Satsangi Sahab.

In these multi-specialty camps the patients are treated in an integrated manner according to their needs and are given a tailor made prescription to suit their unique requirement, constitution and choice.


Keeping with government directives patients are given generic medicines and that too free of cost and not samples.


Doctors from different specialty and systems of medicine have been working in collaboration now for last so many years. They are so easily approachable to the patients and also to each other that they don’t even need to get out of their seat for this. The in- charge Dayalbagh Medical Relief Society helps in organizing the camp along with NSS scheme of Dayalbagh Educational Institute.


Besides giving health advantage through an integrated approach to the financially weaker sections of society, for the multifaceted development of their children, the camp provides Recreation facilities. Children are provided with the material to engage their attention and are encouraged to explore. They are given freedom to choose according to their interest and then are left to do things themselves. They form their own groups, change groups if they want. Kids teach themselves and learn what they want to learn.


All this has surprisingly transformed not only the life of these children but also of their families because there is something of interest for everyone, every age and every aptitude.



For housewives there is food preservation counter, for villagers there is Assistance Services at Chaupal for understanding their problems related with Agriculture, Dairying, Water, Power, Sanitation etc. and to help or offer most feasible solution to them.



And then there is the live interactive commentary on "Bhagvad Geeta Ke Updesh". This helps to give ethical and spiritual values among people of this Neighborhood Community, through discussion. By giving simple explanation of its verses which continues to resound in the background, and inculcates moral values while the camp is on. The concept is imbibed by  everyone  including subconscious mind of children, that  can sprout at time of need when life demands tough decisions to be taken while making  distinction between right and wrong, in a universal perspective.

Education & Career Counselling Services are offered to guide youth about education options/ centres  and employment opportunities and to counsel school dropouts. A counter for spoken English helps develop basic conversational skills is also in place.


One of the girls who started coming and playing here since the camp started, has evolved and with career guidance from the camp, gotten herself enrolled in college and is now completing her BA. She has helped 3 other girls from her village to get admission into Dayalbagh Educational Institute. Education and learning is happening through induction at the camp.


Initially when we started, children were hesitant to admit that they have started liking these activities and when I asked one of the boys that how do you like the camp he turned his face and looked away from me saying ‘buro kya hai’ meaning ‘not bad’. But now over the years our relationship has strengthened and the children have developed trust and interest and now when they are asked the same question they out rightly appreciate it and say ‘bahut badhia’, ‘bahut kuch seekha’, its excellent/ superb, we have learnt a lot here.


In the tribal area of Rajaborari in Madhya Pradesh, 9 years ago at the inception of the camp few basic medicines were distributed but gradually with inclusion of other systems of medicine like Homeopathy and  Ayurveda, the camp has evolved into a holistic health camp with additional facility of tele-medicine for taking expert advice in complicated cases for this unapproachable remote area so that proper referral follows. The villagers are happy to take advantage of it and many tribal women have also taken to soft toy manufacturing, food preservation and stitching as their profession learning these activities at the camp.

To summarize, the most important factor is that these Medical camps are based on an integrated holistic theme.

Second is the consistency of the team and regular follow up. It’s not like a single mobile camp which has been conducted for one day and the team never returns for follow up after the publicity has been achieved!

Third is that the cooperation and closeness amongst doctors of different specialties and systems of medicine without clash of ego and interest is very rare, where patient’s benefit is the only consideration and the team members are all highly motivated to provide voluntary selfless service to mankind.

Starting from its installation to its winding up everything is done on voluntary basis by a team of Dayalbagh Educational Institute students, teachers, staff, and doctors from Saran Ashram Hospital and even village children are happy to help. This has brought about a sea change in overall health of all its beneficiaries including the health of doctors; by adding this dimension to their personality i.e. with ‘selfless service’ they themselves are now enjoying holistic health!