यह
पोस्ट दिनांक ३०-जून-२०१७ के “The Future Nobel Laureates of Timarni” का हिंदी रूपांतरण है।
जब
मैं सुन्दर झीलों के शहर भोपाल में अपनी गर्मियों की छुट्टी अपने भतीजे-भतीजी और
बेटे के साथ गुज़ार रहा था और उनके खेलकुद का भरपूर आनन्द उठा रहा था, मैं इस
विस्मय में पड़ गया और सोचने लगा कि क्या इनकी बुद्धि अनुवांषिक है या की वातावरण,
शिक्षा व सीखने के उचित अवसरों का उनकी बुद्धि पर गहरा प्रभाव है।
एक
इंटरनेट अनुसंधान इंगित करता है कि बेशक बुद्धि पर ‘जीन्स’ का प्रभाव होता है,
किंतु मनुष्य का पालन-पोषण और उचित वातावरण उसके व्यक्तित्व व बुद्धि को निखार देते
हैं। हमारी वास्तविक बुद्धि हमारी अपार बौद्धिक क्षमता का एक छोटा सा अंश है और वास्तविक
बुद्धि को तीव्र करने के लिए सही पालन-पोषण और वातावरण ज़रूरी हैं।
इस
यात्रा पर मुझे टिमरनी जाने का अवसर मिला - हलचल से भरा यह एक छोटा सा जीवंत नगर
है जो कि भोपाल से चार घण्टे की दूरी पर स्थित है। यहां दयालबाग एजुकेशनल
इंस्टिट्यूट, शिक्षा और अच्छा वातावरण देकर, ऊर्जा से परिपूर्ण बच्चों के भविष्य
को उज्जवल तथा उन्हें मेधावी बनाता है।
यह वन्दना
प्रकाश द्वारा एक आमंत्रित ब्लॉग पोस्ट है जो कि टिमरनी के राधास्वामी हाई स्कूल
में JCRC (जूनियर
चिल्ड्रन रिक्रीएशन सेन्टर) चलाती हैं जिसमें सुविधाओं से वंचित बच्चों को एक अति
उत्तम शुरुआत मिल सके।
खुश रहिये,
अनुराग
वन्दना
लिखती हैं.........
JCRC, १२ जून २०१५ में प्रारंभ किया गया, इसमें ३
साल से ६ साल के बच्चों को लिया जाता है। यह परम श्रध्येय प्रो. प्रेम सरन सतसंगी
जी द्वारा व्यक्त की गयी फिलॉसफी ‘तोड़-मोड़-जोड़’ पर आधारित है। इसमें बच्चे
तोड़ने और जोड़ने के द्वारा वस्तु का रूपान्तरण व डिजाइन देना सीखते हैं।
यह
कार्यप्रणाली पारम्परिक नर्सरी बाल विकास से भिन्न है। यहां बच्चे बस्ते, पेंसिल,
रबर व किताब इत्यादि के बिना ही आते हैं।
मानव
जाति की सबसे बड़ी देन व शक्ति कल्पना है। जब हम जीवन में लोंगो से अनेकों बार 'न’
सुनते हैं तो हमारी रचनात्मकता और जानने की इच्छा में थोड़ी बाधा आ जाती है। इसी
को ध्यान में रखते हुये JCRC का पाठ्यक्रम इस तरह से रचा गया है की बच्चों
की उत्सुकता बरकरार रहे और वे अपनी रचनात्मक सोच से नए नए प्रयोग करें।
पाठ्यक्रम
कुछ पहलुओं को ध्यान में रखकर रचा गया है-
- शारीरिक विकास - सकल और सही मोटर कौशल।
- इंद्रियों का विकास - श्रवण, स्पर्श, दृष्टि, सूंघने एवं स्वाद की।
- मानसिक विकास – बुद्धि, भाषा एवं संज्ञानात्मक विकास
- भावनात्मक व सामाजिक विकास
- मूल्यों को आत्मसात करना
प्रारंभिक
गतिविधियों में बच्चे अपनी पसंद के सॉफ्ट टॉय से खेलते हैं, रेत में खेलते हैं, बगीचे
में घूमते हैं, पौधों को पानी भी देते हैं, बीज बोते हैं और फिर उनकी रोज पौधों में
पानी देने की जिम्मेदारी समझाई व सौंपी जाती है। बच्चों को प्रकृति का महत्व
समझाया जाता है। ये पेड़ों की छाल को छापते हैं और इन्हें प्रकृति से संबंधित
कहानियां भी सुनायी जाती हैं। ये खुब खेलते हैं, पेड़ों को गले लगाते हैं, उनका आलिंगन करते हैं व उनके नाम भी रखते हैं।
इससे उन्हें प्रकृति के प्रति लगाव होता है और इन गतिविधियों से ये स्पर्ष,
सूंघने, रंग और उनके बनावट के बारे में समझ जाते हैं जो कि इनके भाषा विकास व संकल्पना
को बढ़ाते हैं।
जब
बच्चे इस वातावरण और शुरु की गतिविधियों में रच बस जाते हैं फिर वे 2D और 3D ब्लॉक
पहेली की ओर बढ़ते हैं, यहां ये छटाई, क्रमबद्धता और टैनग्रैम करते हैं। पाइप
जोड़ते हैं व चिकनी मिट्टी से भी कई चीज़ें बनाते हैं। यहां कुछ सही गलत नहीं होता, क्योंकि सामग्री वैज्ञानिक और आत्मसंशोधित
होती है। यह बच्चे अपने रास्ते स्वयं खोज लेते हैं जिससे इनका आत्मविश्वास भी
बढ़ता है।
बच्चे
धागों में कई रंग बिरंगे मोती पिरोते हैं जो भिन्न-भिन्न
आकार के दिए जाते हैं। जब वे इस में निपुण हो जाते हैं उन्हें बटन, वेलक्रो,
रिबन तथा लेसेस का उपयोग सिखाया जाता है। वे स्वयं अपने कपड़ों के बटन बंद करते
हैं, स्वयं जूते पहनते हैं व लेसेस बाँधते
हैं। यह क्रियाएँ उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करना सिखाती हैं।
कुछ
समय बाद ये अपना दिन व्यायाम, कविता और अभिनय तथा गीत से शुरू करते हैं। हफ्ते में
एक दिन बॉल व फ़्रिस्बी से भी खेलते हैं। व्यायाम के दौरान ये शरीर के अंगो व उनके
कार्यों के बारे में सीखते हैं, साथ ही उन्हें अच्छी आदतों व स्वच्छ
खाने के बारे में कहानियां सुनायी जाती हैं।
कहानियों
में कठपुतलियों का प्रयोग किया जाता है जिससे वे और भी मनोरंजक हो जाती हैं। आगे
बढ़ते-बढ़ते वे मुश्किल पहेली खेलों की ओर बढ़ जाते हैं। एबेकस के इस्तेमाल से
गिनती की शुरुआत की जाती है और स्पिण्डल बॉक्सेस से ज़ीरो यानी शून्य की संकल्पना भी
सिखायी जाती है।
महीने
का एक विषय यह भी होता है जहां सारे फलों और सब्ज़ियों के नाम सिखाए जाते हैं। यह
खेल के जरिये बताये जाते हैं। अध्यापक
सब्ज़ी पर फल बेचने वाले बनते हैं और बच्चे खरीददार या ग्राहक। कौन सी सब्ज़ियों से
क्या-क्या बनता है वो भी बताया जाता है। जैसा कि आम से पना, अचार, चटनी इत्यादि
बनाये जाते हैं। सब मिल कर फल धोते हैं और मिलकर खाते हैं जिससे मिल बाँटकर खाने
का भाव भी जागृत होता है। फलों और सब्ज़ियों के चित्र भी कॉपी में चिपकाते हैं।
यातायात
के साधन भी खिलौनों द्वारा खेल-खेल में सिखाये जाते हैं। ट्रक, वैन, साइकिल
इत्यादि खिलौने खेलने के लिये दिये जाते हैं। साइकिल चलाने के लिये प्रोत्साहित
किया जाता है, साथ ही वजय भी बतायी जाती है कि
साइकिल चलाने से देश और पर्यावरण को लाभ होगा और विषैली गैस कम होगी और पर्यावरण शुद्ध
रहेगा।
सारे
त्यौहार और महत्वपूर्ण घटनायें भी बच्चों के साथ खूब उत्साह से मनाए जाते हैं और
उन सब के बारे में पौराणिक कहानियाँ सुनायी जाती हैं। मूल्यों से संबंधित लघु
कहानी व प्रार्थना के साथ सेंटर पर कार्यक्रम समाप्त किया जाता है।